वैभव माहेश्वरी
नयी दिल्ली, 15 अक्तूबर (भाषा) स्कूल, कॉलेज के पाठ्यक्रमों की पढ़ाई से लेकर यूपीएससी और जेईई जैसी प्रतिष्ठित परीक्षाओं की तैयारी एक प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराना चुनौतीपूर्ण काम है लेकिन आईआईटी से इंजीनियरिंग करने वाले कुछ युवाओं ने इस अवधारणा को सच कर दिखाया और उनका दावा है कि दो साल से कम समय में इस इंटरनेट प्लेटफॉर्म से करीब सात लाख लोग जुड़ चुके हैं।
‘इकोवेशन’ नाम के इस सोशल लर्निंग प्लेटफॉर्म पर अलग अलग प्रशिक्षण समूह बनाये जा सकते हैं। आप अगर किसी विषय के बारे में पढ़ाना चाहते हैं तो भी इस मंच से जुड़ सकते हैं और पढ़ना चाहते हैं या किसी परीक्षा की तैयारी करना चाहते हैं तो भी इस प्लेटफॉर्म का लाभ उठा सकते हैं। इंटरनेट पर इकोवेशन की वेबसाइट पर जाकर या इसके मोबाइल एप के माध्यम से लाभ उठाया जा सकता है।
बिहार के छपरा के रहने वाले रितेश सिंह ने 2012 में आईआईटी दिल्ली से पढ़ाई पूरी की और कुछ महीने एक विदेशी कंपनी में नौकरी करने के बाद अपने कुछ साथियों के साथ ‘इकोवेशन’ की अवधारणा को मूर्त रूप दिया।
रितेश ने बताया कि उन्होंने अपने दोस्त अक्षत गोयल के साथ मिलकर इस अवधारणा में औद्योगिक परियोजनाओं के अनुभव हासिल करने के लिए कुछ समय विदेश में नौकरी करने का फैसला किया और बाद में भारत में आकर ‘इकोवेशन’ को अमली जामा पहनाया।
उन्होंने ‘भाषा’ को बताया कि इस इंटरनेट प्लेटफॉर्म पर अलग अलग विषयों के लर्निंग समूह हैं जिनमें लोग अपनी जरूरत के हिसाब से पढ़ सकते हैं। शिक्षक भी अपने विषयों के लर्निंग समूह बना सकते हैं। इसके माध्यम से केजी क्लास के बच्चे स्कूली पाठ्यक्रम की पढ़ाई कर रहे हैं तो लोग यूपीएससी, एसएससी, बैंक पीओ जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी कर रहे हैं। इसके साथ ही आईआईटी, मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश की तैयारी भी यहां से की जा सकती है।
अलग अलग समूहों में उस विषय से संबंधित पाठ्यसामग्री, विशेषज्ञों के वीडियो लेक्चर, क्विज आदि सबकुछ हैं। इसके अलावा शिक्षार्थी अपनी समस्याओं का निदान भी शिक्षकों के माध्यम से कर सकते हैं।
रितेश ने बताया कि उन्होंने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार में कई स्कूलों में जाकर चीजों को और शिक्षा के स्तर को समझने का प्रयास किया।
बकौल रितेश शिक्षा के परंपरागत मॉडल में शिक्षक सौ से डेढ़ सौ लोगों को ही सही से पढ़ा सकते हैं। सभी जगह सीमित शिक्षक हैं। गुणवत्ता वाली शिक्षा की बहुत बड़ी जरूरत है। हमें लगा कि इसके लिए तकनीकी मदद बहुत कारगर हो सकती है। इंटरनेट और मोबाइल के जरिये तकनीक पहले ही गांवों में पहुंच गयी है। यह बात हमें अपनी परियोजना के लिए लाभदायक लगी। हमने तुरंत अपने मॉडल की अवधारणा तैयार की और सोशल लर्निंग प्लेटफार्म की मदद शिक्षा के क्षेत्र में लेने पर काम शुरू किया। इसी तरह के मंच के रूप में इकोवेशन की शुरूआत दिसंबर 2015 में की गयी।
रितेश ने बताया कि शुरूआत में एक हजार लोगों को इसका लाभ दिया गया। जिसमें भौगोलिक परिस्थितियों का भी ध्यान रखा गया। कुछ यूजर दिल्ली के तो कुछ बिहार जैसे राज्यों के बिल्कुल सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के थे। हमने उनके पढ़ाई के तौर तरीकों का अध्ययन किया। फिर उसे और आगे बढ़ाया। फिलहाल सात लाख से ज्यादा यूजर बन गये हैं और हिंदी, अंग्रेजी के साथ ही भोजपुरी, तमिल आदि क्षेत्रीय भाषाओं में भी प्रशिक्षण समूह चल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इकोवेशन के मॉडल में हम अच्छे शिक्षकों को उनका दायरा और पहुंच बढ़ाने का एक मंच प्रदान कर रहे हैं। उसी समय छात्र अपनी रुचि, जरूरत और भौगोलिक स्थिति के हिसाब से...