जातीय और धार्मिक भेदभाव के प्रभुत्व वाले समाज में लेखक को चुनौतियां मिलती रहेंगी : पेरूमल मुरुगन

नयी दिल्ली, 27 नवंबर (भाषा) अपने उपन्यासों में सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करने वाले प्रसिद्ध तमिल साहित्यकार पेरूमल मुरुगन का कहना है कि वह विभिन्न लेखन शैलियों के साथ प्रयोग करके सामाजिक विवादों और बतौर लेखक उनके सामने पेश आने वाली चुनौतियों से निपटने का प्रयास करते हैं जो कि उनके अनुसार एक कठिन कार्य है।. उन्होंने कहा, ‘‘मैं इन चुनौतियों से सीधा मुकाबला करता हूं और इसमें मुझे उन हथियारों से मदद मिलती है जो भाषा ने मुझे दिए हैं।’’. इसी पुरस्कार की पृष्ठभूमि में पेरूमल मुरुगन ने अपनी लेखन यात्रा से जुड़े विभिन्न सवालों को लेकर ‘पीटीआई भाषा’ को विशेष साक्षात्कार दिया।. तमिल भाषा को अपने रचना संसार का माध्यम बनाने वाले मुरुगन इस बात से सहमति नहीं रखते कि किसी भी भाषा को क्षेत्रीयता का तमगा पहनाया जाए और उसके विस्तार को सीमित किया जाए।. उन्होंने कहा, ‘‘इसके बजाय मैं इसे भारतीय भाषा कहना पसंद करूंगा। तमिल जैसी शास्त्रीय भाषा को क्षेत्रीय भाषा कहना मुझे उसका बहिष्कार जैसा प्रतीत होता है। मेरे लिए तमिल मेरी मातृ भाषा है, मैं केवल यही भाषा जानता हूं। इस भाषा ने न केवल मुझे मेरी पहचान दी है बल्कि मुझे सब कुछ दिया है।’’. वह कहते हैं, ‘‘बल्कि यूं कहिए कि तमिल भाषा हजारों वर्षों की संस्कृति को भी समेटे हुए है। भाषा साहित्य का सार है।’’    . ‘सीज़न्स ऑफ़ द पाम’, जिसे 2005 में किरियामा पुरस्कार के लिए चुना गया था, ‘करंट शो’, ‘वन पार्ट वुमन’, ‘ए लोनली हार्वेस्ट’, ‘ट्रेल बाय साइलेंस’ और ‘पूनाची’ समेत करीब 12 उपन्यास और छह कविता संग्रह लिख चुके मुरुगन की रचनाएं अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में अनूदित होकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाठकों तक पहुंची हैं। . अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाठकों से जुड़ाव के संबंध में किए गए एक सवाल पर मुरुगन ने कहा, ‘‘अपने अनुभवों से मैंने यह देखा है कि मानवीय भावनाएं सार्वभौमिक होती हैं। राष्ट्रीयता से परे, भावनाओं को केंद्र में रखकर लिखे गए उपन्यास हर भाषा के पाठक को गहरे तक प्रभावित करते हैं। पाठक अपने संबंधों को विविध तरीके से व्यक्त करते हैं। मैं अपनी रचनाओं में मानवीय भावनाओं की बहुत सी परतें बुनता हूं, बहुत से सिरे बांधता हूं, मानवीय भावनाएं ही वह चुम्बक हैं जो पाठकों को खींचता है।’’ पेरूमल मुरुगन के बहुत से उपन्यासों में सामाजिक कुरीतियों को लेकर कड़ी टिप्पणियां मिलती हैं। सामाजिक मुद्दों पर आत्मचिंतन और उनके समाधान में साहित्य की भूमिका संबंधी सवाल पर मुरुगन ने कहा, ‘‘साहित्य हमेशा से ही आधुनिक जीवन के बदलावों पर रौशनी डालने और उनकी संकल्पना करने में प्रमुख भूमिका निभाता आया है। इस प्रकार समाज को रास्ता दिखाने में साहित्य अग्रणी भूमिका में रहा है लेकिन अक्सर उसकी यह भूमिका दिखाई नहीं देती।’’. भाषा नरेश.

तमिल साहित्यकार पेरूमल मुरूगन को मिला जेसीबी पुरस्कार

जयपुर, 18 नवंबर (भाषा) तमिल साहित्यकार पेरूमल मुरूगन की कृति ''फायर बर्ड " को शनिवार को 2023 का साहित्यिक क्षेत्र का देश का प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘जेसीबी प्राइज फॉर लिटरेचर’ प्रदान किया गया।. पेरुमल मुरुगन की पुस्तक का तमिल भाषा से जननी कन्नन ने अनुवाद किया है। . ‘जेसीबी प्राइज फॉर लिटरेचर’ के छठे संस्करण की ''शॉर्टलिस्ट'' की घोषणा 20 अक्टूबर को जयपुर में की गई थी। इसमें तेजस्विनी आप्टे-रहम की ‘द सीक्रेट ऑफ मोर’, मनोरंजन ब्यापारी की ‘द नेमेसिस’, पेरुमल मुरुगन की ‘फायर बर्ड’, विक्रमजीत राम की ‘मंसूर’ और मनोज रूपडा द्वारा लिखित ‘आई नेम्ड माय सिस्टर साइलेंस’ पुरस्कारों के दावेदारों की सूची में जगह बनाने में सफल हुई थीं। इनमें बंगाली, हिंदी और तमिल भाषाओं की तीन अनूदित पुस्तकें भी शामिल थीं।. भाषा नरेश.

इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा मूर्ति बाल साहित्य पुरस्कार 2023 से सम्मानित

इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा मूर्ति बाल साहित्य पुरस्कार 2023 से सम्मानित

नयी दिल्ली, नौ नवंबर (भाषा) साहित्य अकादमी ने हिंदी के लिए सूर्यनाथ सिंह तथा अंग्रेजी के लिए इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा मूर्ति समेत 21 भारतीय भाषाओं के रचनाकारों को बृहस्पतिवार को बाल साहित्य पुरस्कार 2023 से सम्मानित किया।.अकादमी के सचिव के. श्रीनिवास राव ने कहा कि बांग्ला और सिंधी भाषा के लेखक स्वास्थ्य कारणों से समारोह में सम्मिलित नहीं हो पाए जबकि दिवंगत मतीन अचलपुरी (उर्दू) का पुरस्कार उनके पुत्र यूसुफ ने ग्रहण किया है।. उन्होंने कहा कि इस वर्ष कश्मीरी भाषा में कोई पुरस्कार नहीं दिया गया है।. भाषा नोमान.